Sanskrit Story with meaning the Foolish Disciples

Sanskrit Story with meaning the Foolish Disciples

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मूर्खाः शिष्याः 

The Foolish Disciples

एकदा कश्चित् मुनिः आसीत् यस्य बहवः  शिष्याः आसन्। एकस्मिन् दिने मुनिः तान् विहारार्थं ऋषभशकटे नीतिवान।मुनिः वृद्धः अपि श्रान्तः आसीत्। सः शिष्यान् प्रति अवदत् "भो शिष्याः! अहम् श्रान्तः! किंचित्कालं स्वपिमि। शकटात् बहिः अस्माकं वस्तूनि न पतेयुः! अतः जागरूकतया भवन्तु। शिष्याः अवदन "अस्तु गुरो! इति।  

    किञ्चित् कालानन्तरं, शकटः एकस्यां शिलायां सङ्घट्टितः। अपि च ललितः। तदा, मुनेः कमण्डलुः शकटात बहिः अपतत। शिष्याः तम अपश्यन। तदनन्तरं, यदा मुनिः जागरितः, तदा अपृच्छत "शिष्याः! सर्वं सम्यक वा? अस्माकं वस्तूनि सुरक्षितानि, वा? इति। शिष्याः अवदन् "आम्! परन्तु, भवतः कमण्डलुः एव मार्गमध्ये अस्खलत्।"    

    मुनिः कुपितः अभवत् "किम्? कमण्डलुः अस्खलत् वा? इदानीं कथं अहम् जलम् नेष्यामि?" ते उक्तवन्तः "परन्तु, भवान् अस्मान् पतितानि वस्तूनि पश्यन्तु इति एव अवदत् न तु पुनः शकटे स्थापयन्तु।" इति।    

    मुनिः अवदत् "अरे-रे मूर्खाः! मम वचनस्य तात्पर्यं इदमस्ति यत न किमपि शकटत बहिः पतेत। परं वा वस्तूनि पतितानि चैत गृहीत्वा शकटे पुनः स्थापयन्तु।" इति। शकटः चलन आसीत्। मुनिः पुनः निद्राम् अकरोत्। इदानीं, वृषभाभ्यां शकृत त्यक्तं। एतत् दृष्ट्वा, एकः शिष्यः शकटात कुर्दित्वा, शकृत नीत्वा, तत कन्दुकम् इव कृत्वा, पुनः शकटे अक्षिपत्।     

    तत बृहत् शकृत्कन्दुकम् प्रत्यक्षतः मुनेः मुखे अपतत्। याद्वशात् सः आश्चर्यचकितो भूत्वा उत्थितवान्। मुनिः अक्रोशत् "रे मूढ! किमेतत्? इति।       

    छात्राः अवदन् "किमर्थं कुप्यति? यदि किमपि शकटात पतति चेत, पुनः शकटे एव स्थापयन्तु इति भवतः आदेशम् एव पालयामः।" इति। मुनिः अवदत् "भवन्तः सर्वे सरलान विषयान् अपि किमर्थं न अवगच्छन्ति ?" इति। किंचित कालम् मुनिः विचिन्त्य शकटे स्थितानां वस्तूनाम् एकाम् आवलिम् अकरोत्। तां शिष्येभ्यः एवं वदन अददात् "पश्यन्तु वत्साः! यदि आवल्यां लिखितानि वस्तूनि पतन्ति चेत, तर्हि तानि नीत्वा शकटे स्थापयन्तु।" इति।  

     शकटः पुनः अचलत्। मुनिः अस्वपत। शिष्याः अपि अस्वपन्। वृषभौ सेतो गच्छन्तौ आस्ताम्। तदानीं शकटः पुनः अस्खलत्। शकटात् मुनिः पार्श्वस्थ -नद्याम् अपतत्।   

    जले मुनेः पतनेन् बृहन ध्वनिः सञ्जातः। तं ध्वनिं श्रुत्वा, शिष्याः जागरिताः। जले पतितः मुनिः स्वरक्षणार्थं आक्रोशत्। शिष्याः शकटात् अकूर्दन। ततः, ते तेषां आचार्यस्य आज्ञाम् अस्मरन। झटिति ते मुनिना दत्ताम् आवलिं नीत्वा, तस्यां मुनेः नाम्नः अन्वेषणम् अकुर्वन। परन्तु, तस्यां मुनेः नाम न आसीत्। अतः ते प्रत्यागच्छन्।        

    "तिष्ठन्तु! निमज्जामि! मां रक्षन्तु! भवतः आचार्यः अहम्।" घोषं कृतवान् मुनिः। शिष्याः उत्तमाः अपि च आचार्यं अस्निह्यान्। ते सम्भ्रमेण तं रक्षितवन्तः। मुनिः कुप्यन आक्रोशत् "किमर्थं माम पूर्वं न रक्षितवन्तः?" इति। "आचार्य! भवतः आज्ञापालनम् एव कृतवन्तः। आवल्यां भवतः नाम न आसीत्। अतः वयं भवन्तं न रक्षितवन्तः।  

    "मम आज्ञापालनम्  वा!! कथं एवं वदन्ति? मम आज्ञायाः तात्पर्यं अवगन्तुं प्रयत्नम् अपि न कृतवन्तः। प्रत्युत भवन्तः केवलं मम वचनमेव अनुसृतवन्तः" इति। 

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The Foolish Disciples Sanskrit Story

Once, there was a sage who had many disciples living with him. One day, the sage took them for an outing in a bullock cart. The sage was old and tired. He told his students "Students, I am tired. I am going to sleep for sometime. Be careful so that our things may not slip out of the cart." The students said "Yes, Sir."

    After a few minutes, the cart bumped into a stone, shaking the cart. The sage's vessel fell out of the cart. All the students watched it fall down. After a little while, the sage wake up and asked "Students, is everything fine? Are all out things safe?". The students replied, "Yes, sir! Only the holy vessel fell out of the cart."

    The sage got very angry and said "What? The vessel fell down? Now, how will I carry water?" They replied "But sir, you only asked to watch the things falling off the cart and not pick them up."

    The sage said "Oh fools, what I meant by watch was that you should take care that nothing falls from the cart. Next time onwards, pick up everything that falls out and put it back into the cart." The bullock cart moved on. The sage dozed. A little while later, the bullocks dropped some dung on the ground. Seeing this, one of the students jumped down, picked up the dung, rolled it up and threw it into the cart.

    The huge ball landed right on the sage's face walking him with a shock. The sage shouted "Oh fool! What is this?"

    The students replied "sir, why are you angry? You only asked us to pick up everything that fell on the ground and put back on the cart." The sage cried "Why can't you understand simple things?' The sage thought for a while and then he made a list of things in the cart. He gave the list to the students saying "Look, children, if any of the articles gives in the list slips down, you must pick them up."

    They moved on. The sage once again fell asleep. The students too were dozing. The bullocks now started climbing up a bridge. Now, the cart slipped again. The sage slid down the cart and fell into a nearby river. The sound of the big splash woke the students. The sage was shouting for help. They jumped out of the cart.

    Then, they remembered what the sage had said. They quickly took out the list and searched for the sage's name. However, they could not find it. So, they moved on.

    "Stop! I am drowning. Save me! I am you teacher!" cried the sage. The students were good and loved their teacher. They rushed and saved him. The sage shouted in anger, "Why did you not save me then?"  "Sir, we only obeyed you. Your name is not in the list and so we did not pick you up."


मूर्ख शिष्य (संस्कृत की कहानी) 

एक बार, एक ऋषि थे जिनके साथ कई शिष्य रहते थे। एक दिन ऋषि उन्हें बैलगाड़ी में घुमाने ले गए। ऋषि बूढ़ा और थका हुआ था। उन्होंने अपने छात्रों से कहा "छात्रों, मैं थक गया हूँ। मैं कुछ देर के लिए सोने जा रहा हूँ। सावधान रहना कहीं हमारा सामान गाड़ी से फिसल न जाए।" छात्रों ने कहा "हाँ, सर।"

    कुछ मिनटों के बाद, गाड़ी हिलते हुए एक पत्थर से टकरा गई। ऋषि का पात्र गाड़ी से गिर गया। सभी छात्रों ने उसे गिरते हुए देखा। थोड़ी देर के बाद, ऋषि उठे और पूछा "छात्रों, सब ठीक है? क्या बाहर की चीजें सुरक्षित हैं?"। छात्रों ने उत्तर दिया, "हाँ, श्रीमान! केवल पवित्र पात्र गाड़ी से गिर गया।"

    ऋषि को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने कहा, "क्या? बर्तन गिर गया? अब मैं पानी कैसे उठाऊंगा?" उन्होंने जवाब दिया "लेकिन सर, आपने केवल गाड़ी से गिरने वाली चीजों को देखने और उन्हें उठाने के लिए नहीं कहा था।"

    ऋषि ने कहा, अरे मूर्खों, घड़ी से मेरा मतलब यह था कि तुम ध्यान रखना कि गाड़ी से कुछ गिरे नहीं। बैलगाड़ी आगे बढ़ी। साधु सो गया। थोड़ी देर बाद बैलों ने कुछ गोबर जमीन पर गिरा दिया। यह देखकर एक छात्र नीचे कूदा, गोबर उठाया, उसे लपेटा और गाड़ी में फेंक दिया।

    विशाल गेंद सीधे ऋषि के चेहरे पर जा लगी और उन्हें झटका लगा। साधु चिल्लाया "अरे मूर्ख! यह क्या है?"

    छात्रों ने उत्तर दिया "श्रीमान! आप नाराज क्यों हैं? आपने ही हमसे कहा था कि जो कुछ भी जमीन पर गिरे उसे उठाएं और गाड़ी पर वापस रख दें।" ऋषि ने रोते हुए कहा, 'तुम साधारण सी बातें क्यों नहीं समझ पाते?' ऋषि ने कुछ देर सोचा और फिर उन्होंने गाड़ी में चीजों की एक सूची बनाई। उन्होंने छात्रों को यह कहते हुए सूची दी कि "देखो, बच्चों, अगर सूची में दिया गया कोई भी लेख नीचे छूट जाता है, तो तुम्हें उसे उठा लेना चाहिए।"

    वे आगे बढ़े। ऋषि एक बार फिर सो गया। छात्र भी ऊंघ रहे थे। बैल अब एक पुल पर चढ़ने लगे। अब, गाड़ी फिर से फिसल गई। ऋषि  गाड़ी से फिसल कर पास की एक नदी में जा गिरा। धमाके की आवाज से छात्रों की नींद खुल गई। ऋषि मदद के लिए चिल्ला रहा था। वे गाड़ी से कूद गए।

    तब उन्हें ऋषि की बात याद आई। उन्होंने जल्दी से सूची निकाली और ऋषि का नाम खोजा। हालांकि, उन्हें यह नहीं मिला। तो, वे आगे बढ़े।

   "रुको! मैं डूब रहा हूँ। मुझे बचाओ! मैं तुम्हारा शिक्षक हूँ!" ऋषि रोया। छात्र अच्छे थे और अपने शिक्षक से प्यार करते थे। उन्होंने दौड़कर उसे बचा लिया। साधु गुस्से से चिल्लाया, "फिर तुमने मुझे क्यों नहीं बचाया?" "श्रीमान! हमने केवल आपकी बात मानी। आपका नाम सूची में नहीं है और इसलिए हमने आपको नहीं उठाया।"

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